कौन जाने?
मैं लिख रहा हूँ,
नहीं, मैंने फिर से लिखना शुरू किया..
मेरे हाथ काँप रहे हैं,
लेकिन मेरी उँगलियाँ लिखती रही हैं।
एक लेखक के लिए,
उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि आगे क्या होगा? और न ही क्या हो चूका?!
क्योंकि वे इसके बारे में लिख सकते हैं।
जैसा कि मैं लिख रहा हूँ..
लिखने वालों को डर नहीं लगता, जब उनकी स्याही चलना बंद हो जाती है,
क्योंकि वे जानते हैं कि उन्होंने बहुत कुछ लिखा है..
इस बिंदु पर, मुझे इस बात की चिंता है कि मेरी कलम चलना बंद हो गई-
क्योंकि मैंने कुछ उपयोगी नहीं लिखा।
मुझे वास्तव में क्या चिंता है?
मैंने अपने आप से फिर पूछा।
मेरे हाथ काँप रहे हैं,
दिल तेजी से धड़क रहा है।
मैं ये एक बात कबूल कर रहा हूँ,
किसी ने कहा है ''कथनी से ज्यादा शब्द बोलते हैं'',
मैंने कहा ''शब्द कभी-कभी हमें परेशान करते हैं, भले ही हम उन्हें न चाहें।''
मुझे खुद पर भरोसा नहीं है,
जैसा कि मेरी दिमाग कागज पर सब कुछ उंडेलता रहा है।
कौन जानता है कि मैं क्या लिख रहा हूँ?
कौन जानता है कि आप दुनिया से क्या छुपा रहे हैं?
कौन जाने?
कौन जाने?...